पूर्वाही ख़त्म हो गई थी जिन्दगी की | हवाए कब दिशा बदल ले इसका अनुमान लगाना बेकार काम है | कौन कहता है जिन्दगी में किस्मत का कोई हाथ नहीं| कोशिशो से सपने अगर सच किये जाते हें तो किस्मतो से हाथो की लकीरे बदलने की बात भी कभी कभी सच है| किसे पता था की रामनरेश मेरे गाँव का पड़ोसी किसी लाटरी से लाखो कमा लेगा |
दस दिन पहले एक दर्दनाक हादसे में मेरे शोहर अहमद खान का देहांत हो गया |बचपन ने आँगन लांगा तभी से उनसे निकाह करना चाहती थी | मेरी बड़ी मोसी का लड़का था अहमद | निकाह के बाद घर के सारे फैसले मेरी रजा से होते थे | आज फैसला मेरे ऊपर लेना था और किसी को मुझे पूछने की जरुरत महसूस नहीं हुई | दीवारों से सुनने में आया था की किसी तावीज वाले बाबा ने मुझे मनहूस बताया है | क्या हमारे घर के फैसले कोई तावीज वाला करेगा ? क्या कंकर के २-३ दाने हाथ में लेकर कोई ये बताएगा मैं कैसी हूँ | शायद हमारे महजब में आदमी चार निकाह कर सकता हें | मुझे किसी ओर की बेगम बनाने का फेसला घर वालो ने कर लिया था | मैं आज घर का कोई हिस्सा नहीं थी| सुना था बड़े पेड़ छाव देते हैं और घर में बुजुर्गो का यही काम हे | लेकिन आज एक बात और समझ में आ गई की कई बार बड़े पेड़ छोटे पेड़ो को बड़ा होने से रोकते हें |
मनहुस, कुलीन, अभागन जाने क्या क्या शब्द इस्तमाल होने लगे थे मेरे लिए कोशिश जारी थी मुझे पराया करने की | मुझे घर से बेदखल करने की, मेरी मोसी भी मेरे दर्द पर खामोश थी | जब एक औरत एक औरत के दर्द पर खामोश रहती हे तो जन्नत का भी पतन शुरू हो जाता है | अगर एक मर्द एक औरत के दर्द पर आवाज उठाये तो ज़न्नत का निर्माण शुरू हो जाता है | शायद में तक़दीर की उंगलियों में कटपुतली सी बंधी थी | तमाम कोशिशो के बावजुद कोई मुझे अपना शोहर बनाने को तेयार नहीं था | तावीज वाले बाबा की बात चारो ओर आग सी फ़ैल चुकी थी | लोगो ने शायद उसकी बात को औरत से ज्यादा दर्जा दे दिया हे | किसी औरत \के इतिहास में इस से बुरा दिन क्या होगा जब उसकी आत्मा मार दी गई हो और उसके जिस्म का भी कोई खरीददार नहीं मिल रहा हो |
मैंने तो माना किया था अहमद को की इस कार से मत जावो फ्यूल निकल रहा है, टैंक में समस्या है | स्त्री को आज इंसान नहीं वस्तु समजने वाली दुनिया में मेरी दास्तान कई दफा दोहराइ जाती है, बस बदलता है तो किरदार कहानी वही होती है | देल्ही गैंग रैप की सुचना अख़बार से मिली कल , क्या औरत के जिस्म में जान नहीं, वो बस एक मास का टुकड़ा हे ? दुनिया के रहनुमाओं को सचेत कर दिया जाये की कही ऐसा ना हो की गाँधी के देश में ओरत के जिस्म के टुकड़े भी बाजार में बेचे जाने लगे | वेसे में कोई सामाजिक कार्यकर्त्ता नहीं हूँ, मैं तो एक साधारण औरत भी नहीं | कौन हूँ मैं ? एक मनहूस ?
अचानक मेरे कमरे का दरवाजा खुला, मुझे कहा गया कि कल मेरा निकाह अमित त्रिवेदी से करा दिया जायेगा | उसे भी पता नहीं क्या सर्प दोष था | अमित मेरा स्कूल का दोस्त था | वो स्कूल में मुझे प्यार करता था ,पर पता नहीं हमारी किस्मत तो मनहूस और काल सर्प योग ने मिलाई | मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था , एक शरीर के पास रास्ता भी क्या होगा | अहमद के देहांत के बाद मेरा वजूद ख़त्म हो गया था, बस नाम बचा था रुखसाना वो भी तावीज वाले बाबा चुरा ले गए | अब सोनपापड़ी देख कर खाने का मन नहीं करता था जबकि बचपन में सारी पॉकेट मनी में सोनपापड़ी में खर्च कर देती थी | तीन वक्त खाने वाली रुखसाना को एक वक्त भी भूख नहीं लगती थी | सोते वक्त छत को देखती तो छत पहचानने से इनकार कर देती | खिड़की खोलने से डर लगता था, हवाए मुझे एक जेसी लगती थी सुबह से शाम तक | छत से कोई कबूतर गायब हो गए था | नमाज की आवाज जेहन तक पहुचने से पहले ख़त्म हो जाती |
दिमाग को समझने और दिल के संभलने से पहले मैं अमित त्रिवेदी के घर में थी | पिछले चार घंटो में जो रीति रिवाज किये गए मुझे उनके बारे में जरा भी ध्यान नहीं | अमित मेरे साथ था , समझ नहीं आता इसे दानव कहूँ या देवता | इसकी तरफ किस नजर से देखू , वक्त ने ये केसी करवट ली| क्या रुखसाना त्रिवेदी मेरा नाम हें?
“हम दोनों मिलकर सभाल लेंगे सबकुछ रुखसाना” अमित ने मेरा हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा |
मैं संभल नहीं पाई, किसी का इतना भरोसा मुझे पहली दफा मिला जिन्दगी में|मेरी आँखों में जो आंसू सुख चुके थे फिर हरे हो गए| इससे पहले की आंसू अपना स्थान छोड़ते अमित ने मुझे बाहों में ले लिया,आंसू फिर भी थमे नहीं |मुझे पहली बार रो कर बहुत अच्छा लगा, अजीब दुनिया हे ये | पूरी रात गुजर गई पर हम अब तक खामोश थे | कई सवाल जवाब हम खुद से कर रहे थे पर एक दुसरे से नहीं| जिन्दगी के अंधरे में अमित अकेला ऐसा सूरज था जो मेरे साथ जल रहा था | मेरे सारे गम मोम की तरह पिघलने लगे , इस सूरज की तेज में | हवाए ठंडी लगने लगी, सारी खिडकिया खुल गई, घर की और दिल की भी | धीरे धीरे सब ठीक होने लगा , एक दिन तो मेने सोनपापड़ी भी खाई | जिन्दगी में मिठास भरने लगी | अभी कुछ ही दिन बीते थे की अमित के घर वालो और अमित ने मुझे रानू कहकर पुकारना शुरू कर दिया| उन्होंने आपस में कुछ निर्णय लिया था शायद | मुझे रानू नाम अच्छा नहीं लगता था| जब जब इस नाम से पुकारा जाता तो मुझे लगता मेरा वजूद मिटाया जा रहा है ,पर में तो रुखसाना हूँ और में जीना चाहती हूँ |
“रानू एक गिलास पानी लाना“ अमित ने ऑफिस से आते ही जुते उतारते हुए कहा |
“मुझे रुखसाना कहा करो अमित “मैंने पानी का गिलास अमित के हाथो में देते हुए कहा |
“रानू समझो “अमित ने धीरे से कहा |
“रानू नहीं रुखसाना “मैंने आवाज ऊँची करते हुए कहा |
“यार नाम में क्या रखा है, देखो पापा नहीं चाहते की गाँव में लोगो को पता ना चले की मैंने एक मुसलमान से शादी की | जब हम दिवाली पर गाँव जायेंगे तब तक तुम्हे रानू नाम अच्छा लगने लगेगा इसलिए हमने अभी से पुकारना शुरू कर दिया रानू “अमित ने स्पष्ट शब्दों में बेमतलब बात कही |
मैं भी नहीं समझ पा रही हूँ नाम में क्या रखा है | अगर नाम में कुछ नहीं है तो क्यों मुझे रुखसाना अच्छा लगता है और रानू नाम से नफरत होती है ? क्या ऐसा हो सकता हे की मैं उसे शहनवाज बोलना शुरू कर दू |मुझे तो बस इतना पता था की शादी आदमी और औरत के बीच होती हे , ये हिन्दू और मुसलमान कहाँ से बीच में आ गए | क्या प्यार महजब को देखकर किया जाता हे ? क्या इश्क करने से पहले भी धर्म पूछा जाता हे ? मई चुप हो गई | मैंने निगाहे नीचे की और अपने कमरे में आ गई | अमित भी मेरे पीछे पीछे आ गया |
“रानू थोडा समझोता करो जिन्दगी में, जिन्दगी अच्छी लगेगी” |अमित ने मेरे पास बैठते हुए कहा |
“अमित समझोता हमेसा मैं ही क्यों करू | समझोता हमेशा औरत करती हे जबकि हालत बनाने वाला तो अधिकतर आदमी होता है ”| जब मुझे रुखसाना से रानू बनाया गया तो मैंने समझोता किया| जब तावीज वाले बाबा ने मुझे मनहूस करार किया तब मैंने समझोता किया |जब स्कूल में मुझसे पहले मेरे भाई को साइकिल मिली तो मैंने समझोता किया , जबकि नंबर मेरे ज्यादा थे| हाथो में नोकरी होते हुए मुझे शादी कर बस एक गृहणी बना दिया तो मैंने समझोता लिया | अमित के घर वालो ने मेरी भावना के खिलाफ मुझे साड़ी पहनाई गाँव के कार्यकर्म में तब मैंने समझोता किया | क्या समझोता करना बस ओरत के हिस्से में था ?
अमित ने अपनी जुबान नहीं खोली उस रात | रात के दुसरे पहर में अचानक मेरा पेट दर्द करने लगा, मुझे उलटी हुई और एक अजीब सी आशंका मन में बैठ गई | सुबह होते ही मैंने नमाज अदा की फिर शंकर जी का पाठ किया और बाजार चली गई | डॉक्टर को दिखाते ही मेरी आशंका हकीकत में बदल गई | मैं गर्भवती थी पिछले डेढ़ महीने से, मेरे पेट में अहमद का बच्चा था| पर मैं अब अहमद खान की बीबी नहीं अमित त्रिवेदी की पत्नी थी | वक्त इतना तेज चला मेरे साथ की मुझे इस का ख्याल ही नहीं रहा |
शाम को घर लोटकर मैं चुपचाप लेट गई | ऐसा लग रहा था की कमरे की छत धीरे धीरे नीचे आ रही हो , मैंने खिडकिया बंद करली | आँखों में अजीब सा दर्द और दिल में एक घुठन भर आई | समझ नहीं पा रही थी की किस तरह अपने हाल अमित से बयां करू | क्या अमित मेरी बात समझ पायेगा? क्या अमित इस बच्चे को अपना नाम देगा? नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता वो बच्चा गिराने को थोड़ी कहेगा | इतना बुरा ख्याल मेरे दिमाग में आ केसे सकता है | कई तरह के सवाल और जवाब आपस में टकरा रहे थे | शायद जवाब बेहद कमजोर थे | शायद नहीं, जवाब कमजोर थे क्योकि में कमजोर थी | अमित आज रात देरी से आया | वो आते ही खाना खाकर सोने चला गया | मैंने अपना हाथ अमित के हाथो में रखते हुए,अपने दिल की हिम्मत बंधाते हुए कहा अमित मुझे तुमसे कुछ बात करना है |अमित ने अपना चेहरा घुमाया और मुस्कुरा कर हामी भर दी| दिल का एक हिस्सा मानो कमजोर होता जा रहा था पर शरीर ने थोडा साथ दिया |
“अमित मेरे पेट में अहमद का वंश, में गर्भवती हूँ“ मैंने इतना कहा और चुप हो गई| अमित के चेहरे का रंग उड़ चूका था आँखे गुस्से की गवाही दे रही थी | मैं उन्हें समझने की नाकाम कोशिश कर रही थी , वो एक शब्द भी नहीं बोले | उन्होंने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमाया और आँखे बंद करली | इस रात का पल पल मेरी जिन्दगी की सदी बनता जा रहा था| औरत के जिन्दगी की राते शायद काफी लम्बी होती है | तारे आपस में टिमटिमाना बंद करदे तो आसमां को सुनेपन का अहसास होता है | अगर किसी मोर को बस एक रंग मिले तो उसे जिन्दगी में रंगों की कीमत पता चल जाती है | मेरा हाल उस किसान की तरह है जिसकी फसल उसका नहीं आसमा में उमड़ते बदलो का इंतजार करती है | काफी मस्सकत के बाद सूरज ने पूर्व में दस्तक दी | ग्यारह बजे तक सबको पता चल गया था घर में तो सारे लोग मुझसे आँखे चुराने लगे थे | रसोई घर के पास वाले कमरे में पूरा परिवार आपसी बात करने में लगा था | अमित के पिता ने गर्भपात की मोहर लगा दी और अमित ने मुझे निर्णय सुना दिया,मुझसे बिना पूछे |
मेरी आँखों में आंसू थे तभी मुझे लगा मेरे गर्भ के अन्दर से मेरा बेटा सवाल कर रहा है
“अम्मा आप मुझे मारोगे तो नहीं ना”
“मैं गर्भपात नहीं करवाऊंगी अमित” मैंने स्पष्ट शब्दों में अमित से कहा |
“रानू हमारे पास कोई दूसरा तरीका नहीं है , मेरा परिवार इसे स्वीकार नहीं करेगा“ अमित भी स्पष्ट कहने लगा|“अम्मी जान आप किसी भी हाल में झुकना मत” फिर मुझे लगा मेरे गर्भ से आवाज आई |
“तुम इस बात का दर्द नहीं जानती रानू “ अमित ने मुझे समझाते हुए कहा |
“मैं दर्द नहीं जानती ?द र्द का ओरत से बचपन का नाता होता है अमित | उस दर्द का क्या जो लड़की तेरा साल की उम्र से हर महीने माँ बनने के लिए सहन करती है | उस दर्द का क्या जो प्रसव के वक्त महसूस होता है ,उस दर्द का क्या जो हमारे अरमान को कुचलते देखकर होता है , उस दर्द का क्या जब उसी के पिता उसे जवानी की दहलीज पर आते ही पराया कहना शुरू कर देते है ,उस दर्द का क्या जो रुखसाना को रानू बनकर हुआ | अमित मुझे तो लगता हे दर्द और ओरत समानार्थी हे”| मैंने अपनी बात एक साँस में कह दी और आंसू आना शुरू हो गए पर अमित को अब परवाह नहीं थी |
“समस्या ये हे की वो मुसलमान हे रानू हमारा परिवार उसे बर्दास्त नहीं करेगा“ अमित ने कहा |
“बच्चा अभी तो दुनिया में आया नहीं और तुम उसका महजब बताने लगे” मैंने जवाब दिया |
“मुसलमान क्या होता है“ ? मेरे गर्भ से आवाज आई |
“तो क्या करू अमित त्रिवेदी का लड़का सद्दाम खान,मुझे कुछ नहीं सुनना, बस गर्भपात करवाओ”
मैं अपने कमरे में चली गई| मेरे बस में समझाना नहीं रहा अब| मैंने रात में चुपचाप सामान पैक किया और एक चिठ्ठी छोड़ कर वहां से चली गई मैंने लिखा
प्रिय अमित
मुझे माफ़ करना |
मेरा जमीर मुझे गर्भपात की इजाजत नहीं देता| गलती अगर मेरी है तो मैं जिमेदारी उठा लूंगी| लेकिन दर्द इस बात का है की तुमने मेरा साथ नहीं दिया | मुझे समझ नहीं आता की तुम पहले अपने बच्चे के पिता बनते या पहले उसे हिन्दू बनाते | खेर छोड़ो, लेकिन एक बात समझ लो माँ हिन्दू या मुस्लिम नहीं होती , माँ बस माँ होती है और में पहले माँ हूँ बाद में रानू या रुखसाना |
तुम्हारी
रानू /रुखसाना
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