फिल्म -अनामोलिसा

फिल्म अनामोलिसा, इंसान के अन्दर मौजूद मानवीय तत्व और उससे उपजे गहरे निराशवाद के बाहर झाँकने का एक वास्तविक और खुबसूरत प्रयास है। चार्ली कॉफमन समकालीन स्क्रीनप्ले लेखन के कुछ कामयाब और चुनिंदा जादूगरों में से एक हैं |

जब वो किसी किताब को पटकथा में लिखने के प्रयास में आने वाली समस्याओं से रूबरू होते है तो “Adaptation” बन जाती है| उनका फितुर नायक और नायिका की याददाश्त को मिटाकर भी उसमें इश्क़ ख़ोज लेता है, और हमें “Eternal sunshine of spotless minds” देखने को मिलती है। Synecdoche, New York नामक उत्तर आधुनिकतावाद फिल्म में हकीकत और कल्पना के बीच की दूरी कहीं धूमिल होती जाती है।

हर बार की तरह कॉफमन ने एक ऐसे आत्मीय पहलू को अपने कारीगरी में पिरोया है, जिसमें माइकल स्टोन नाम का लेखक, जिसने कस्टमर सर्विस पर किताब लिखी है, एक बिज़नस यात्रा पर आता है। जहाँ उसे एक होटल में लिसा मिलती है। माइकल अपने आप को लोगो से जुड़ने में नाकाम पाता है, और वो दुनिया से एक तरह से कट गया है। अपने जीवन के इस उलझे, अनसुलझे दौर में जहाँ एक तरफ उसके पास सबकुछ है फिर भी उसे किसी चीज की तलाश है | ये तलाश उसे हताश कर रही है | चार्ली कॉफमन को अपने पात्रों के अंदर एक पात्र रचने में महारत हासिल है, जिसमें दोनों पात्र एक दुसरे के उलट होते हैं |
इस फिल्म में कंप्यूटर द्वारा उत्पन्न पात्र की बजाय 3 डी प्रिंटर द्वारा बनाई गई पपेट का इस्तमाल किया गया है | फिल्म में नायक और नायिका के अलावा सारे पात्रों की आवाज़ें एक जैसी है | जब आप इश्क में होते है तो सिर्फ प्रेमिका सबसे अलग प्रतीत होती है, बाकी सारी दुनिया एक-सी ही लगती है | आवाज का एस तरह का प्रतीकात्मक प्रयोग पहली दफा फ़िल्मी दुनिया में देखा गया है | इस फिल्म में लिसा के चेहरे पर आँखों के पास एक दाग होता है, जिसकी वजह से लिसा को लगता है कि वो दूसरों से कम खुबसूरत है | इस दाग की वजह से लिसा हीनभावना की शिकार हो गई है | लेकिन क्या इश्क़ महबूब के अन्दर मौजूद सिर्फ खुबसूरत चीज़ों को पाने तक सीमित है? या इश्क़ इस बात में निहित है, कि आप उसकी कमजोरी को भी उसी जुस्तुजू से अपनाते हो? इस बात का जवाब फिल्म बस एक पंक्ति में दे देती है, जिसमें माइकल लीसा के उस भाग को चूमने की अनुमति माँगता है |

यहाँ से फिल्म एक अध्यात्मिक मोड़ ले लेती है, जहाँ पहली बार १० मिनट के अंतराल तक पपेट का सेक्स दिखाया गया है | ये ओशो के सम्भोग से समाधि की तरह लगता है | भारतीय दर्शक सेंसर के कारण इस आत्मीय चिंतन से थोड़ा दूर हो सकते है | जहाँ माइकल अपने निराशवादी माहौल से बाहर निकलता है, वहीँ लीसा को अपने खुबसूरत होने का एहसास होने लगता है |

प्यार शून्य को शिखर तक पहुँचाने का एक जरिया है | यहाँ शिखर का मतलब किसी एक बिंदु से नहीं बल्कि चेतना के सफ़र से है | सनातन धर्म की बात करें, तो मनुष्य का सफ़र शून्य से शून्य तक होता है | यहाँ दूसरा शून्य, शून्य होकर भी परिपूर्ण है, और इसी पूर्णता को इश्क़ कहीं पूरा करता है | अकेला आदमी हमेशा अधूरा रहा है, और रहेगा। जब तक उसके सफ़र में कोई चेतना, चाहे वो इश्क़ हो, चाहे वो कविता हो, या कुछ और हो, साथ हो जाए | ख़ुद को पाना ही सबसे पाक इश्क़ की ख़ासियत है | अगर कोई ख़ुद के करीब लाने की बजाए आपको अपनें करीब पँहुचा दे, वो आपका हितैषी है, और यही प्यार है |

ये फिल्म कहीं भी एनिमेटेड नहीं लगती जबकि ऐसा महसूस होता है, कि पात्र सारे जीवित हैं | फिल्म जीवन के ऐसे दौर की कहानी है, जिस से हर आदमी कभी ना कभी गुजरा है | फिल्म में पपेट के चेहरे को दो हिस्सों में दिखाया गया है, जिस से पात्र की भावुकता स्पष्ट रूप से दर्शक तक पहुँच पाती है | दो हिस्से जिन्दगी के दो पहलुओं को भी दिखाते है | फिल्म में लीसा की आवाज में जेनिफर जैसन जैसे एक सम्मोहन हैं, जिसकी मधुरता संगीत-सी है | फिल्म का संगीत कमाल का है | ये इस साल की सबसे मानवीय फिल्मो में से एक है|

Sanima's photo.

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